कार्तिक पूर्णिमा व्रत,पूजा विधि तथा महत्व

कार्तिक पूर्णिमा व्रत,पूजा विधि तथा महत्व

कार्तिक पूर्णिमा को स्नान आदि से निवृत होकर भगवान विष्णु की पूजा-आरती करनीचाहिए। पूजा-अर्चना की समाप्ति के बाद अपने सामर्थ्य और शक्ति के अनुसार दान करनाचाहिए ।  दान ब्राह्मणो, बहन, भांजे आदि को देना चाहिए। ऐसी मान्यता है की कार्तिकपूर्णिमा के दिन एक समय ही भोजन ग्रहण करना चाहिए। 
 
ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की  शाम के समय वसंतबान्धवविभो शीतांशो स्वस्ति न: कुरु इस मंत्र का उच्चारण करते हुए चाँद देव को अर्घ्यदेना चाहिए। एकादशी व् तुलसी विवाह से चली आ रही पंचक व्रत कार्तिक पूर्णिमा के दिनसमाप्त होती है। तो प्रेम से बोलिए भगवान विष्णु जी की जय हो।  आषाढ़ शुक्ल एकादशीसे भगवान विष्णु चार मास के लिए योगनिद्रा में लीन होकर कार्तिक शुक्ल एकादशी कोउठते हैं और पूर्णिमा से कार्यरत हो जाते हैं। इसीलिए दीपावली को लक्ष्मीजी की पूजाबिना विष्णु, श्रीगणेश के साथ की जाती है। लक्ष्मी की अंशरूपा तुलसी का विवाहविष्णु स्वरूप शालिग्राम से होता है। इसी खुशी में देवता स्वर्गलोक में दिवालीमनाते हैं इसीलिए इसे देव दिवाली कहा जाता है।
 
सफलता का मंत्र---
 
ऊँ पूर्णमदः पूर्णमिदम…पूर्णात, पूर्णमुदच्यते
पूर्णस्य पूर्णमादाय…..पूर्णमेवावशिष्यते  
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