जिले में भूसे को लेकर अकाल के हालात, प्रशासन को तत्काल निकासी पर लगानी चाहिए रोक अन्यथा जानवर होंगे सडकों पर

जिले में भूसे को लेकर अकाल के हालात, प्रशासन को तत्काल निकासी पर लगानी चाहिए रोक अन्यथा जानवर होंगे सडकों पर

बारां, 26 अप्रैल। जानवरों के चारे के लिए प्रमुख उत्पादक कहे जाने वाले बारां जिले को इस बार आगे आने वाले समय में जबरदस्त चारे की किल्लत से रूबरू होना पड सकता है। हालात यही रहे तो दो या तीन महीने बाद ग्रामीण चारे के अभाव में अपने जानवरों को खुला छोडकर शहर की सडकों पर विचरण करने के लिए मजबूर कर देंगे। जिला प्रशासन को तत्काल जिले में चारा डिपो खोलने तथा रिजर्व चारे का स्टाक करने के साथ ही जिले से चारे की निकासी पर तत्कालप्रभाव से प्रभावी रोक लगानी चाहिए।
व्यापार महासंघ अध्यक्ष ललित मोहन खण्डेलवाल ने जिला प्रशासन तथा राज्य के गोपालन मंत्री से आग्रह करते हुए बताया कि वर्तमान हालात में जब चारे की बहुतायत होनी चाहिए, इस वक्त भी चारा 8-10 रूपए किलो तथा 10 हजार रूपए ट्रेक्टर बिट में मिल रहा है। नोलाईयों से तैयार चारा जिसे जानवर खाने में अरूचि दिखाते है, वर्तमान में वह 7 हजार रूपए प्रति बिट मिल रहा है तथा थ्रेसर से निकला हुआ चारा 10 हजार रूपए प्रति बिट में उपलब्ध है। एक समृद्व पशुपालक ने बताया कि चार माह पूर्व जहां 14 रूपए प्रति किलो चारा मिल रहा था जबकि जानवरों को खिलाने वाला बाटे की कीमत 18-20 रूपए किलो उपलब्ध थी। कई इलाकों में तो गेहूं से अधिक कीमत पर भूसा जानवरों के लिए उपलब्ध हो पाया है। वर्तमान में जिले से लगातार भूसे की निकासी जारी है।
एक समृद्व पशु पालक कैलाश शर्मा ने बताया कि वर्तमान में उनके पास बडी संख्या में पशुधन है तथा इस समय भी महंगी कीमत पर भूसा जानवरों को खरीद करखिला रहे है जो 8-10 रूपए प्रति किलो की दर पर मिल रहा है। वहीं भूसे के मुकाबले में बांट 18 रूपए किलो एवं खल चूरी 20-22 रूपए किलो उपलब्ध है। एक जानवर को प्रतिदिन 10 किलो भूसा अगर भैंस हो तो 15-20 किलो भूसा पेट भरने के लिए चाहिए तब जाकर वह पर्याप्त दूध दे सकती है। तीन माह पूर्व हालात इतने विकट थे कि भूसे के लिए धर-धर मजबूर होना पड रहा था और 100 रूपए प्रति डाल तक जिसमें 8-10 किलो भूसा मिल रहा था, मजबूरन खरीदकर जानवरों का पेट भरना पडा। जिले में हरे चारे की उपलब्धता इतनी अधिक नही है कि लाखों जानवरों का पेट हरे चारे से भरा जा सके। जुलाई के बाद तो बारिश से हरियाली हो जाती है लेकिन मई, जून, जुलाई तीन माह जानवरों के लिए विकट रहते है। ऐसे हालात में जिला प्रशासन एवं सरकार को जिले में भूसे के अकाल के हालात को देखते हुए निकासी पर तत्काल पाबन्दी लगााकर सरकार व स्वयंसेवी संस्थाओं के माध्यम से भूसे की खरीदकर उनके डिपो स्थापित करने चाहिए ताकि आगे आने वाले समय में जिले के लाखों जानवरों को चारे के अभाव में भूखा रहने को मजबूर नही होना पडे।
महासंघ अध्यक्ष ललित मोहन खण्डेलवाल ने बताया कि वर्तमान में ही भूसे की कमी के हालात को देखते हुए लगता है कि आगे आने वाले समय में सैकडो पशुपालक अपने पशुओं को सडकों एवं शहर तथा कस्बों में छोडने को मजबूर हो जाएंगे जिसके कारण जहां व्यापार प्रभावित होगा वही राजमार्गो पर जानवरों की बहुतायत के कारण दुर्घटनाओं का अंदेशा बना रहेगा। ऐसे हालातों को देखते हुए जिला प्रशासन को तत्काल जिले से भूसे की निकासी को रोककर पशुधन को मुनाफाखोरों के चंगुल से बचाने की व्यवस्था करनी चाहिए।
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