गंगा की सहायक नदियों पर सीवरेज का बुनियादी ढांचा विकसित करने के लिए लगभग 2700 करोड़ रुपये की परियोजनाएं स्वीकृत

गंगा की सहायक नदियों पर सीवरेज का बुनियादी ढांचा विकसित करने के लिए लगभग 2700 करोड़ रुपये की परियोजनाएं स्वीकृत

राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) की कार्यकारिणी समिति की 46वीं बैठक एनएमसीजी के महानिदेशक जी अशोक कुमार की अध्यक्षता में संपन्न हुई। इस बैठक में जिन परियोजनाओं को स्वीकृति दी गई, उनमें से 2700 करोड़ रुपये से अधिक राशि की 12 परियोजनाएं उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल में सीवरेज के बुनियादी ढांचे के विकास से संबंधित हैं। उत्तराखंड और बिहार के लिए वर्ष 2022-23 के लिए 42.80 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत से वनरोपण कार्यक्रम को भी मंजूरी दी गई। इस कार्यक्रम का उद्देश्य सामुदायिक भागीदारी के दृष्टिकोण के साथ जलवायु के प्रति लचीले और टिकाऊ पारिस्थितिकी तंत्र के प्रबंधन के लिए एक सक्षम वातावरण का निर्माण करना है।
उत्तर प्रदेश में कुल 3 परियोजनाओं को मंजूरी दी गई, जिनमें से 475.19 करोड़ रुपये की लागत वाली एक परियोजना प्रयागराज में सीवरेज के बुनियादी ढांचे के विकास से संबंधित है । प्रयागराज परियोजना में 20 केएलडी की क्षमता वाली मल कीचड़ सह-उपचार सुविधा और 90 एमएलडी की क्षमता वाले अपशिष्ट स्टेशन, अवरोधन और डायवर्जन कार्य आदि के साथ-साथ 90 एमएलडी की क्षमता वाले एसटीपी के निर्माण की परिकल्पना की गई है। उत्तर प्रदेश में स्वीकृत दो अन्य परियोजनाओं में गोमती नदी के लिए लोनियापुरवा, लखनऊ में 264.67 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत से 50 एमएलडी एसटीपी का निर्माण,आईएंडडी कार्य आदि तथा सेंगर और कारवां नदियों के लिए हाथरस शहर में 128.91 करोड़ रुपये की लागत से 24 एमएलडी एसटीपी, आई एंड डी कार्य आदि शामिल हैं।
वहीं पश्चिम बंगाल में आदि गंगा नदी के संरक्षण के लिए 653.67 करोड़ रुपये, बिहार में दाउदनगर और मोतिहारी कस्बों के लिए 42.25 और 149.15 करोड़ रुपये की परियोजना को मंजूरी दी गई। इसके अलावा उत्तराखंड और बिहार के लिए वर्ष 2022-23 हेतु वनरोपण कार्यक्रम को भी मंजूरी दी गई।
बैठक में पांचों राज्यों के लिए ‘गंगा नदी के तटों के निकट उनके संरक्षण और क्षेत्र के आर्थिक विकास के साथ-साथ लोकवानस्पतिक उद्देश्यों के लिए कौशल विकास कार्यक्रमों के माध्यम से पुष्प विविधता का वैज्ञानिक अन्वेषण' नामक परियोजना को भी मंजूरी दी गई। यह परियोजना पतंजलि अनुसंधान संस्थान (पीआरआई) और पतंजलि जैविक अनुसंधान संस्थान (पीओआरआई), हरिद्वार, उत्तराखंड के सहयोग से कार्यान्वित की जाएगी।
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