जानिए दशहरा / विजयदशमी क्यों, कब ,क्यूँ और कैसे मनाएं ?? (दशहरा पर्व मनाने के पीछे क्या है कारण?) 

  जानिए दशहरा / विजयदशमी क्यों, कब ,क्यूँ और कैसे मनाएं ?? (दशहरा पर्व मनाने के पीछे क्या है कारण?) 

  हिन्दू धर्मे में नवरात्री का त्यौहार बड़ी ही धूम धामसे मनाया जाता है नवरात्रि का त्यौहार साल में दो बार आता है पहला नवरात्रि त्यौहारचैत्र मास में और दूसरा नवरात्रि अश्विन मास में आता है, अश्विन मास में जोनवरात्री का त्यौहार आता है उसे हिन्दू धर्म के लोग बड़ी ही धूम धाम से मानाते है इसत्यौहार में पूरे नौ दिन तक माता के अलग अलग स्वरूपों की पूजा की जाती है| भक्त लोगमाता का पंडाल बनाकर उसमे माता की मूर्ति स्थापित करते है और नौ दिनों तक उनकी पूजाकर आशीर्वाद प्राप्त करते है| कुछ भक्त गण माताओं के दर्शन के लिए धार्मिक स्थल परभी जाते है | 
 
ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री के अनुसार दशहरा (विजयदशमी याआयुध-पूजा) हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है। अश्विन (क्वार) मास के शुक्ल पक्ष कीदशमी तिथि को इसका आयोजन होता है। भगवान राम ने इसी दिन रावण का वध किया था तथादेवी दुर्गा ने नौ रात्रि एवं दस दिन के युद्ध के उपरान्त महिषासुर पर विजय प्राप्तकिया था। इसे असत्य पर सत्य की विजय के रूप में मनाया जाता है। इसीलिये इस दशमी को 'विजयादशमी' के नाम से जाना जाता है (दशहरा = दशहोरा = दसवीं तिथि)। दशहरा वर्ष कीतीन अत्यन्त शुभ तिथियों में से एक है, अन्य दो हैं चैत्र शुक्ल की एवं कार्तिकशुक्ल की प्रतिपदा।
 
दशहरा का त्यौहार सम्पूर्ण भारत में उत्साह और धार्मिक निष्ठा के साथ मनायाजाता है। इस दिन भगवान राम ने राक्षस रावण का वध कर माता सीता को उसकी कैद सेछुड़ाया था। राम-रावण युद्ध नवरात्रों में हुआ था। रावण की मृत्यु अष्टमी-नवमी केसंधिकाल में हुई थी और उसका दाह संस्कार दशमी तिथि को हुआ। जिसका उत्सव दशमी दिनमनाया, इसीलिये इस त्यौहार को विजयदशमी के नाम भी से जाना जाता है।
सम्पूर्ण भारत में यह त्यौहार आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को बड़ेही उत्साह और धार्मिक निष्ठा के साथ मनाया जाता है।
ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की इस वर्ष दशहरा 30 सितंबर 2017 (शनिवार) को मनाया जाएगा। इस विजयदशमी पर विजय मुहूर्त दोपहर - 14:08 से 14:55मिनट तक का है। अपराह्न पूजा समय- 13:21 से 15:42  तक उचित रहेगी |
दशमी तिथि आरंभ- 23:49 (29 सितंबर)
दशमी तिथि समाप्त- 01:35 (01 अक्तूबर)
दशहरा / विजयदशमी पूजन के  दौरान अपराजिता पूजा करना शुभ माना जाता है। दशहरेका उत्सव शक्ति और शक्ति का समन्वय बताने वाला उत्सव है। ज्योतिषाचार्य पंडितदयानन्द शास्त्री के अनुसार नवरात्रि के नौ दिन जगदम्बा की उपासना करके शक्तिशालीबना हुआ मनुष्य विजय प्राप्ति के लिए तत्पर रहता है। इस दृष्टि से दशहरे अर्थातविजय के लिए प्रस्थान का उत्सव का उत्सव आवश्यक भी है।
 
भारत के सभी स्थानों में इसे अलग-अलग रूप में मनाया जाता है। कहीं यह दुर्गाविजय का प्रतीक स्वरूप मनाया जाता है, तो कहीं नवरात्रों के रूप में। बंगाल मेंदुर्गा पूजा का विशेष आयोजन किया जाता है। यह त्योहार हर्ष और उल्लास का प्रतीक है।इस दिन मनुष्य को अपने अंदर व्याप्त पाप, लोभ, मद, क्रोध, आलस्य, चोरी, अंहकार, काम, हिंसा, मोह आदि भावनाओं को समाप्त करने की प्रेरणा मिलती है। यह दिन हमेंप्रेरणा देता है कि हमें अंहकार नहीं करना चाहिए, क्योंकि अंहकार के मद में डूबाहुआ एक दिन अवश्य मुंह की खाता है। रावण बहुत बड़ा विद्वान और वीर व्यक्ति थापरन्तु उसका अंहकार ही उसके विनाश कारण बना। यह त्योहार जीवन को हर्ष और उल्लास सेभर देता है, साथ यह जीवन में कभी अंहकार न करने की प्रेरणा भी देता है।
 
ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री के अनुसार दशहरा अथवा विजयदशमी भगवानराम की विजय के रूप में मनाया जाए अथवा दुर्गा पूजा के रूप में, दोनों ही रूपों मेंयह शक्ति-पूजा का पर्व है, शस्त्र पूजन की तिथि है। हर्ष और उल्लास तथा विजय कापर्व है। इस अवसर पर विभिन्न स्थानों पर बड़े-बड़े मेलों का आयोजन भी किया जाता है।जगह-जगह रामकथा को नाटक रूप में दिखाया जाता है। माता या दुर्गा के भक्त नौ दिनोंतक नवरात्रि के व्रत रखते हैं। मां दुर्गा की नौ दिनों तक पूजा करने के पश्चात्दशमी के दिन यह त्यौहार मनाया जाता हैं। दसवें दिन रावण, मेघनाद और कुंभकरण केपूतले का दहन किया जाता है। इस अवसर पर विद्यालयों में बच्चों के लिए दस  दिन काअवकाश भी घोषित कर दिया जाता है। यह त्यौहार बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक मानाजाता है.
  • Powered by / Sponsored by :