दशहरा पूजा विधि 

  दशहरा पूजा विधि 

   दशहरे के दिन कई जगह अस्त्र पूजन भी किया जाता है। वैदिकहिन्दू रीति के अनुसार इस दिन श्रीराम के साथ ही लक्ष्मण जी, भरत जी और शत्रुघ्न जीका पूजन करना चाहिए। इस दिन सुबह घर के आंगन में गोबर के चार पिण्ड मण्डलाकर (गोलबर्तन जैसे) बनाएं। इन्हें श्रीराम समेत उनके अनुजों की छवि मानना चाहिए। गोबर सेबने हुए चार बर्तनों में भीगा हुआ धान और चांदी रखकर उसे वस्त्र से ढक दें। फिरउनकी गंध, पुष्प और द्रव्य आदि से पूजा करनी चाहिए। पूजा के पश्चात् ब्राह्मïणों कोभोजन कराकर स्वयं भोजन करना चाहिए। ऐसा करने से मनुष्य वर्ष भर सुखी रहता है।
 
दशहरा वर्ष की तीन अत्यन्त शुभ तिथियों में से एक है, अन्य दो शुभ तिथयां हैंचैत्र शुक्ल की एवं कार्तिक शुक्ल की प्रतिपदा। इसी दिन लोग नया कार्य प्रारम्भकरते हैं, शस्त्र-पूजा की जाती है। प्राचीन काल में राजा लोग इस दिन विजय कीप्रार्थना कर रण-यात्रा के लिए प्रस्थान करते थे। इस दिन जगह-जगह मेले लगते हैं।मां दुर्गा की विशेष आराधनाएं देखने को मिलती हैं। रामलीला का आयोजन होता है। रावणका विशाल पुतला बनाकर उसे जलाया जाता है।
 
यह हैं दशहरा / विजयदशमी का धार्मिक महत्त्व --- पुराणों और शास्त्रों मेंदशहरे से जुड़ी कई अन्य कथाओं का वर्णन भी मिलता है। लेकिन सबका सार यही है कि यहत्यौहार असत्य पर सत्य की जीत का प्रतीक है।मान्यता है कि इस दिन श्री राम जी नेरावण को मारकर असत्य पर सत्य की जीत प्राप्त की थी, तभी से यह दिन विजयदशमी यादशहरे के रूप में प्रसिद्ध हो गया। दशहरे के दिन जगह-जगह रावण,कुंभकर्ण और मेघनाथके पुतले जलाए जाते हैं। देवी भागवत के अनुसार इस दिन मां दुर्गा ने महिषासुर नामकराक्षस को परास्त कर देवताओं को मुक्ति दिलाई थी, इसलिए दशमी के दिन जगह-जगह देवीदुर्गा की मूर्तियों की विशेष पूजा की जाती है। कहते हैं, रावण को मारने से पूर्वराम ने दुर्गा की आराधना की थी। मां दुर्गा ने उनकी पूजा से प्रसन्न होकर उन्हेंविजय का वरदान दिया था। भक्तगण दशहरे में मां दुर्गा की पूजा करते हैं। कुछ लोगव्रत एवं उपवास करते हैं। दुर्गा की मूर्ति की स्थापना कर पूजा करने वाले भक्तमूर्ति-विसर्जन का कार्यक्रम भी गाजे-बाजे के साथ करते हैं।
 
भारत कृषि प्रधान देश है। जब किसान अपने खेत में सुनहरी फसल उगाकर अनाज रूपीसंपत्ति घर लाता है तो उसके उल्लास और उमंग का पारावार नहीं रहता। इस प्रसन्नता केअवसर पर वह भगवान की कृपा को मानता है और उसे प्रकट करने के लिए वह उसका पूजन करताहै। समस्त भारतवर्ष में यह पर्व विभिन्न प्रदेशों में विभिन्न प्रकार से मनाया जाताहै। महाराष्ट्र में इस अवसर पर सिलंगण के नाम से सामाजिक महोत्सव के रूप में भीइसको मनाया जाता है। सायंकाल के समय पर सभी ग्रामीणजन सुंदर-सुंदर नव वस्त्रों सेसुसज्जित होकर गाँव की सीमा पार कर शमी वृक्ष के पत्तों के रूप में 'स्वर्ण' लूटकरअपने ग्राम में वापस आते हैं। फिर उस स्वर्ण का परस्पर आदान-प्रदान किया जाताहै।
 
ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री के अनुसार दशहरा अथवा विजयदशमी भगवानराम की विजय के रूप में मनाया जाए अथवा दुर्गा पूजा के रूप में, दोनों ही रूपों मेंयह शक्ति-पूजा का पर्व है, शस्त्र पूजन की तिथि है। हर्ष और उल्लास तथा विजय कापर्व है। भारतीय संस्कृति वीरता की पूजक है, शौर्य की उपासक है। व्यक्ति और समाज केरक्त में वीरता प्रकट हो इसलिए दशहरे का उत्सव रखा गया है। दशहरा का पर्व दस प्रकारके पापों- काम, क्रोध, लोभ, मोह मद, मत्सर, अहंकार, आलस्य, हिंसा और चोरी केपरित्याग की सद्प्रेरणा प्रदान करता है।   
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