जानिए सफल (प्रखर) वक्ता के योग

जानिए सफल (प्रखर) वक्ता के योग

मनुष्य जीवन पूरी तरह ग्रहो के प्रभाव पर टिका है, कुंडली में जिस तरह के ग्रह योग निर्मित होते है उसी तरह का जीवन प्राप्त होता है, हर कोई जीवन को सफल और बेहतर बनाने के लिए अपनी तरफ से हर संभव प्रयास करता है परन्तु जिस स्तर के ग्रह योग कुंडली में निर्मित होते है उस स्तर तक की ही सफलता जीवन में मिलती है । हर किसी की आकांक्षा अच्छे रहन सहन के साथ साथ समाज में मान सम्मान और उच्च पद एवं प्रतिष्ठा की होती है परन्तु उनके लिए कुंडली में ग्रह योग उपस्थित होना आवश्यक है, ज्योतिष के मूलं ग्रंथों में कुछ महत्वपूर्ण ग्रह योग बताये गए है ,उमने से ये कुछ प्रमुख ग्रह योग है जो उच्च दर्जे की सफलता अर्थात मजबूत आर्थिक स्थिति, सुख सुविधाएं, उच्च पद और सम्मान में विशेष प्रतिष्ठा दिलाते है। ज्योतिषाचार्य पंडित दयानंद शास्त्री ने बताया की बहुत लोगों के लिए भाषण देना एक बहुत मुश्किल काम है, स्टेज पर खड़े होते ही पसीना छूट जाता है। हालांकि येभी सच है कि तीन-चार बार स्टेज से बोलने के बाद आपका ये डर खत्म हो जाता है या कम हो जाता है। वक्ता तो आप बन जाते हैं, लेकिन कुशल वक्ता होना आसान नहीं। कॉरपोरेटहो, पॉलिटिक्स हो, कॉलेज हो, सोसायटी हो या फिर और कोई भी फील्ड, कुशल वक्ताओं कीपूछ हर जगह होती है। ऐसा होना मुश्किल जरूर हो लेकिन नामुमकिन नहीं, ड्राइविंग और स्विमिंग की तरह थोड़ी सी प्रेक्टिस और कुछ नियमों को लगातार फॉलो करने से आप अच्छे वक्ता बन सकते हैं, हां पर बिना क्रिएटिव माइंड के राह आसान नहीं। कुछ खास बातों का ध्यान एक अच्छा वक्ता हमेशा रखता है, लेकिन कैसे अपने आप में कुछ सुधार करके यह हासिल कर सकते हैं, आइए जानते हैं। जब आप मंच पर हों तो यह विश्वास होना जरूरी है कि ये आपका मंच है, आपकी सत्ता है और इस पर आपकी पूरी पकड़ जरूरी है क्योंकि आप अपने अंदर यह महसूस नहीं करेंगे तो आपकी अपनी बात पर भी पकड़ नहीं रहेगी। नम्र रहिए लेकिन दब्बू नहीं। आंकड़ों औरबातों में सच्चाई होनी चाहिए, और विचारों को पूरी मजबूती से रखिए। डरा हुआ व्यक्ति यदि भाषण देने खड़ा भी हो जाय तो उसके मुख से विसंगति बात निकलेगी—कुछ का कुछ कहेगा—एक बात पूरी होने से पहले उसे छोड़कर दूसरी कहने लगेगा। प्रसंग का प्रवाह जारी रखना भूल कर अप्रासंगिक बाते कहने लगेगा। सुनने वाले जब उन अटपटी बातों का उपहास करने की मुद्रा में होंगे तो बोलने वाले का रहा-सहा साहस भी टूट जायगा। जितना समय उसे बोलना था—जो कुछ कहना था उसे पूरा किये बिना ही वह चुप होजायगा। यह वक्ता की वैसी ही पराजय है जैसा कि लड़ाई के मैदान में हारे हुए सैनिक केउतरे हुए चेहरे पर दिखाई देती है। इस प्रकार उपहास भाजन होते हुए कितने ही पराजय अनुभव करने वाले वक्ता हिम्मत हार जाते हैं और भविष्य में मंच पर खड़े होकर बोलने का साहस ही नहीं कर पाते। एक और बड़ी बात है लय और शैली। वक्ता यदि अपने ज्ञान का प्रदर्शन एक सुर में करता रहे तो शायद आधे से ज्यादा श्रोता सो जाएंगे। इसलिए माहौल बोरिंग ना हो, इसलिए इससे बचना जरूरी है। अपनी बातों में लय, रस और एक दिलचस्प शैली डेवलप करना बहुत जरूरी है। बस अपनी बात को फील करिए, और उसी भावनात्मक अंदाज में पब्लिक के सामने रख दीजिए, देखिएगा श्रोता कैसे बहे चलेगा आपके साथ। ज्योतिषाचार्य पंडित दयानंद शास्त्री ने बताया की बोलने से पहले ये भी ध्यान में रखना जरूरी है कि सुनने वाले कौन हैं, मेजोरिटी किसकी है। जाहिए है बच्चे सामनेबैठे हैं, तो आपको उनके मूड को ध्यान में रखना होगा, महिलाएं हैं तो उनसे जुड़ीबातों को अपने शब्दों में पिरोना होगा। कॉरपोरेट्स हैं तो उनकी डेली लाइफ से जुड़ीबातों, किस्सों को लेना होगा, युवा किसी और तरह के मूड में रहता है और गांव देहातके लोग अलग तरह की बातें सुनना चाहते हैं। आपने मोदी जैसे किसी नेता या अमिताभ बच्चन जैसे अभिनेता को मंच पर आते वक्त देखा होगा कि कैसे वो मंच पर आते ही उत्साह और जोश से भर जाते हैं, उनका ये उत्साहखोखला नहीं होता, उनका ज्ञान और विषय पर पकड़ उनकी आंखों में चमक की असली वजह होती है। तो जाहिर है आपको जिस विषय पर बोलना है, उसकी पहले से तैयारी बहुत जरूरी है। घबराहट एक ऐसी चीज है जो सबको होती है चाहे वो कुशल खिलाड़ी हो या नौसिखिया, सो उसे अपने ऊपर हावी होने से बचा जाए उतना ही ठीक है। इससे बचने का एक ही तरीका है अभ्यास, क्योंकि तैराकी अगर सीखनी है तो पानी में उतरना ही होगा, किनारे पर बैठकर तैराकी के नुस्खे सीखने से कुछ नहीं होगा। ज्योतिषाचार्य पंडित दयानंद शास्त्री के अनुसार वक्ता का अतिमहत्वपूर्ण गुणहै उसकी निर्भीकता, निःसंकोचता। डरता वह है जो कायर होता है—उन अनेक दोष दुर्गुणों में, पाप अपराधों में अभाव अभिशापों में एक कायरता भी है। डरपोक आदमी पग-पग पर मरता रहता है जब कि स्वाभाविक मौत जिन्दगी भर में एक बार ही आती है। भयभीत मनुष्य कायरताके वशीभूत होकर न सोचने योग्य सोचता और न करने योग्य करता है। उसका सहारा लेने की किसी को इच्छा नहीं होती उस पर कोई कदाचित ही कुछ बड़े प्रयोजन पूरे कर सकने का विश्वास करता है। डरपोक आदमी गया गुजरा और दया का पात्र समझा जाता है। वक्तृता में लड़खड़ाना प्रधानतया भीरुता एवं कायरता के कारण ही होता है अन्यथा बात-चीत तो यार दोस्तों से भी करनी पड़ती है, घर बाजार में भी तो बाते की ही जाती हैं। जब वहां जीभको शब्द उच्चारण करने में कोई कष्ट नहीं होता तो भाषण के समय ही अवरोध क्यों हो, वक्तृता के अवसर पर लड़खड़ाने में प्रायः वक्ता की डरपोक प्रकृति ही प्रधान बाधा सिद्ध होती है। निर्भीकता और निःसंकोचता दोनों में अन्तर तो बहुत है फिर भी उन्हें सहेली सहचरी कहा जा सकता है। संकोच करने झिझकने में आत्महीनता ही एक कारण नहीं होती, उसमें छिपाव या दुराव का भाव भी छिपा रहता है। दुराव छल की दृष्टि से भी होता है और परायेपन के कारण भी। पराये लोगों से तरह-तरह की आशंकाएं होती हैं, वे क्रुद्ध हो सकते हैं—बुरा मान सकते हैं—उपहास कर सकते हैं—जैसी आशंकाएं मन में रहती हैं, इसलिए कहने वाले को अपने मन की बात मन में ही छिपाये रहना ठीक लगता है। छोटे और बड़े होने के कारण भी यह अन्तर देखा जाता है। नौकर और मालिक में प्रायः खुलकर बात नहीं होती। नौकर का मन मालिक के बड़प्पन के भार से दबा-डरा रहता है। मालिक अपने नौकर को आश्रित, तुच्छ, हेय मानता है और उससे बराबरी के दर्जे पर लाकर मन की बातें करना अनुचित प्रतीत होता है। उसमें उसे अपनी हेठी लगती है। ऐसे ही अवरोध नौकर मालिक कोजी खोलकर बातें नहीं करने देते और अति समीप रहते हुए भी बहुत दूर—नदी के एक तट सेदूसरे तट की तरह कभी न मिलने वाले फासले पर रहते हैं। संकोचशीलता में आदमी की अपनी चारित्रिक या योग्यता सम्बन्धी कमी की झिझक भी एक कारण होता है। ऐसे ऐसे अनेकों कारण संकोचशीलता के होते हैं। वे कुछ भी क्यों न हों—इतना निष्कर्ष तो निकाला ही जा सकता है कि शिष्टाचार के लिए आवश्यक विनयशीलता के अतिरिक्त संकोचशीलता हर दृष्टि से अवांछनीय है। वह संकोची को दब्बू झेंपू, पिछड़ा, असंस्कृत, असामाजिक, साहसहीन, जैसी क्षुद्रताओं से ग्रसित सिद्ध करती है। ज्योतिषाचार्य पंडित दयानंद शास्त्री ने बताया की वृ्श्चिक लग्न की कुण्डली में लग्नेश बारहवे में गुरु से दृ्ष्ट हो, शनि लाभ भाव में हो, राहु-चन्द्र चौथे घरमें हो, शुक्र स्वराहि के सप्तम में लग्नेश से दृ्ष्ट हो तथा सूर्य ग्यारहवे घर के स्वामी के साथ युति कर शुभ स्थान में हो, साथ ही गुरु की दशम एवं दूसरे घर पर दृ्ष्टि हो तो व्यक्ति प्रखर व तेज नेता बनता है ज्योतिषाचार्य पंडित दयानंद शास्त्री ने बताया की राहु को सभी ग्रहों में नीतिकारक ग्रह का दर्जा है। इसका प्रभाव राजनीति के घर से होना चाहिए। सूर्य को भी राज्य कारक ग्रह की उपाधि दी गई है। सूर्य का दशम घर में स्वराशि या उच्च राशि में होकर स्थित हो, राहु का छठे घर, दसवें घर व ग्यारहवें घर से संबध बने तो यह राजनीतिमें सफलता दिलाने की संभावना बनाता है। इस योग में दूसरे घर के स्वामी का प्रभाव भी आने से व्यक्ति अच्छा वक्ता बनता है। आपने अक्सर ऐसे व्यक्तियों को देखा होगा जिनकी वाणी अत्यंत आकर्षक व प्रभावकारी है। वे जब भी बोलते हैं, अपनी वाणी के प्रभाव से सभी का ध्यानाकर्षण करलेते हैं। ऐसे व्यक्ति श्रेष्ठ वक्ता, ज्योतिषी, धर्मोपदेशक, कवि, पत्रकार, राजनेता, शिक्षक, गायक आदि बनकर सामाजिक प्रतिष्ठा प्राप्त करते हैं। आईए जानते हैंवे कौन से ग्रहयोग होते हैं जो किसी जातक को श्रेष्ठ वक्ता बनाते हैं। ज्योतिषाचार्य पंडित दयानंद शास्त्री के अनुसार जब जन्मपत्रिका में द्वितीयभाव, द्वीतीयेश व बुध-गुरू से वाणी का विचार किया जाता है। यदि किसी जन्मपत्रिका में बुध-गुरू का श्रेष्ठ संबंध हो जैसे राशि परिवर्तन, दृष्टि संबंध अथवा युति, तो ऐसा जातक प्रखर वक्ता होता है। यदि बुध-गुरू के संबंध के अतिरिक्त द्वि‍ति‍येश शुभ भावों में हो एवं द्वीतीयभाव पर शुभ ग्रहों का प्रभाव हो व इनमें से किसी पर भी कोई पाप प्रभाव ना हो, तो ऐसा व्यक्ति अपनी वाणी के आधार पर पद-प्रतिष्ठा व धन अर्जित करता है।