आलू वैज्ञानिक खेती पुस्तक एवं फोल्डर का जिला कलेक्टर ने कियाविमोचन

आलू वैज्ञानिक खेती पुस्तक एवं फोल्डर का जिला कलेक्टर ने कियाविमोचन

धौलपुर, 07 नवम्बर। कृषि विकास के कार्यक्रमों के प्रभावी गुणवत्तापूर्ण उद्देश्यपरक एवं समयबद्ध क्रियान्वयन के तहतआत्मशाषी परिषद की बैठकका आयोजन जिला कलेक्टर राकेश कुमार जायसवाल की अध्यक्षता में किया गया उन्होंने आलू वैज्ञानिक खेती पुस्तक एवं फोल्डर का विमोचन किया । वर्ष 2020-21 की कार्य योजना प्रस्तुत की गई । इस अवसर पर उन्होंने एफआईजी एवं एफएसजी के माध्यम से कार्यों की क्रियान्वित और कोरोना महामरी के मद्देनजर प्रशिक्षण कराने की बात कही । उन्होंने कहा कि आलू को सब्जियों का राजा कहा जाता है। आलू की खेती के लिए यह समय उपयुक्त है क्योंकि आलू के लिए छोटे दिनों की अवस्था की आवश्यकता होती है । धौलपुर जिले में भी अधिकांश क्षेत्र में आलू की खूब पैदाबार की जाती है । जिससे किसानों को कम लागत में काफी मुनाफा हो जाता है । वर्तमान समय में आलू की कीमतें काफी उछाल पर है जिससे किसान आलू के कारोबार को सराहा रहे है । जिले के आलू की खेती करने वाले किसान आलूका व्यापार आसपास के राज्यों को करते है जिसकी बाजार में खूब मांग है । जिले में उत्पादित होने वाला आलू आसपास के जिलों तथा राज्यों व अन्य स्थानों को भेजा जाता है। जिले में फसल में आलू की कई किस्में प्रयोग में आ रही है जो अच्छी लाभकारी है । उन्होंने बताया कि आलू को सब्जियों का राजा कहा जाता है। भारत में शायद ही कोई ऐसा रसोई घर होगा जहाँ पर आलू ना दिखे । इसकी मसालेदार तरकारी, पकौड़ी, चॉट, पापड चिप्सजैसे स्वादिष्ट पकवानो के अलावा अंकल चिप्स, भुजिया और कुरकुरे भी हर जवां के मन कोभा रहे हैं प्रोटीन, स्टार्च, विटामिन सी और के अलावा आलू में अमीनो अम्ल जैसे ट्रिप्टोफेन, ल्यूसीन, आइसोल्यूसीन आदि काफी मात्रा में पाये जाते है जो शरीर केविकास के लिए आवश्यक है आलू भारत की सबसे महत्वफपूर्ण फसल है । उप निदेशक कृषि एवंपदेन परियोजना निदेशक आत्मा राजेश कुमार शर्मा ने बताया कि प्रकाशित एवं कृषिमहाविद्यालय बसेड़ी के वैज्ञानिकों द्वारा लिखित पुस्तिका में आलू की फसल के संबंधमें महत्वपूर्ण जानकारियां उपलब्ध कराई गई है जो किसानों के लिए उपयोगी सिद्ध होगी ।
जलवायु
आलू के लिए छोटे दिनों कि अवस्था आवश्यक होती है भारत के बिभिन्न भागो में उचित जलवायु कि उपलब्धता के अनुसार किसी न किसी भाग में सारे सालआलू कि खेती कि जाती बढवार के समय आलू को मध्यम शीत की आवश्यवकता होती है । मैदानी क्षेत्रो में बहुधा शीतकाल (रबी) में आलू की खेती प्रचलित है । आलू की वृद्धि एवं विकास के लिए इष्टतम तापक्रम 15- 25 डिग्री सेल्सियस के मध्य होना चाहिए । इसके अंकुरण के लिए लगभग 25 डिग्री सेल्सियस संवर्धन के लिए 20 डिग्री सेल्सियस और कन्द विकास के लिए 17 से 19 डिग्री सेल्सियस तापक्रम की आवश्यकता होती है, उच्चतर तापक्रम (30 डिग्री सेल्सियस) होने पर आलू विकास की प्रक्रिया प्रभावित होती है अक्टूबर से मार्च तक, लम्बी रात्रि तथा चमकीले छोटे दिन आलू बनने और बढ़ने के लिए अच्छे होते है।
भूमि
आलू को क्षारीय मृदा के अलावा सभी प्रकार के मृदाओ में उगाया जा सकता है परन्तु जीवांश युक्त रेतीली दोमट या सिल्टी दोमट भूमि इसकी खेती के लिए सर्वोत्तम है भूमि में उचित जल निकास का प्रबंध अति आवश्यक है मिटटी का P H मान 5.2 से 6.5 अत्यंत उपयुक्त पाया गया है । केन्द्रीय आलू अनुसन्धान शिमलाद्वारा विकसित किस्में कुफरी चन्द्र मुख, कुफरी अलंकार 70 दिन में तैयार हो जाती है यह किस्म पछेती अंगमारी रोग के लिए कुछ हद तक प्रतिरोधी है यह प्रति हेक्टेयर 200-250 क्विंटल उपज देती है । कुफरी बहार 3792 , कुफरी नवताल G 2524 ,75-85 दिनमें तैयार, कुफरी ज्योति, कुफरी बादशाह, कुफरी सिंदूरी, कुफरी देवा, कुफरी लालिमायह शीघ्र तैयार होने वाली किस्म है जो औसतन 80 से 120 दिन में तैयार हो जाती है इसके कंद गोल आँखे कुछ गहरी और छिलका गुलाबी रंग का होता है यह अगेती झुलसा के लिए मध्यम अवरोधी है । कुफरी लवकर, कुफरी स्वर्ण आलू की संकर किस्में कुफरी जवाहर JH 222 90-110 दिन में तैयार खेतो में अगेता झुलसा और फोम रोग कि यह प्रतिरोधी किस्म है यह 250-300 क्विंटल उपज देता है । अन्य किस्में E 4486, JF 5106 , कुफरीसंतुलज J 5857 , कुफरी अशोक P 376 J
,JEX -166 C 90 दिन की अवधि में तैयार होनेवाली किस्म है । आलू की नवीनतम किस्में
कुफरी चिप्सोना -1, कुफरी चिप्सोना -2, कुफरी गिरिराज, कुफरी आनंद आदि है।
उपयुक्त माप के बीज का चुनाव
आलू के बीज का आकार और उसकी उपज से लाभ का आपस मे गहरा सम्बंध है । बडे माप के बीजों से उपज तो अधिक होती है परन्तु बीज की कीमत अधिक होने से पर्याप्त लाभ नही होता । इसलिए अच्छे लाभ के लिए 3 से.मी. से 3.5 से.मी.आकार या 30-40 ग्राम भार के आलूओं को ही बीजके रूप में बोना चाहिए ।
बुआई का समय एवं बीज की मात्रा
पाला पडना आम बात है, आलू को बढने के लिए कम समय मिलता है । अगेती बुआई से बढवार के लिए लम्बा समय तो मिल जाता है परन्तु उपज अधिक नही होती क्योंकि ऐसी अगेती फसल में बढवार व कन्दब का बनना प्रतिकूल तापमान मे होता है साथ ही बीजों के अपूर्ण अंकुरण व सडन का खतरा भी बना रहता है। अत: आलू की बुआई इस प्रकार करें कि आलू दिसम्बर के अंत तक पूरा बन जाऐ । आलू की बुआई का उपयुक्त समय अक्तू्बर माह का पहला पखवाडा है। पूर्वी भारत में आलू अक्तूबर के मध्य‍ से जनवरी तक बोया जाता है । इसके लिए 25 से 30 क्विंटल बीज प्रतिहैक्टेयर पर्याप्त होता है।
बुआई की विधि
पौधों में कम फासला रखने सेरोशनी, पानी और पोषक तत्वों के लिए उनमें होड बढ जाती है फलस्वपरूप छोटे माप के आलूपैदा होते हैं। अधिक फासला रखने से प्रति हैक्टेयर में पौधो की संख्या कम हो जाती है जिससे आलू का मान तो बढ जाता है परन्तु उपज घट जाती है। इसलिए कतारों और पौधो कीदूरी में ऐसा संतुलन बनाना होता है कि न उपज कम हो और न आलू की माप कम हो । उचित मापके बीज के लिए पंक्तियों मे 50 से.मी. का अन्तलर व पौधों में 20 से 25 से.मी. की दूरी रखनी चाहिए।
बीज उपचार
ओगरा, दीमक, फंफूद और जमीन, जनित बीमारी से बचावके लिए बीज उपचारित करने का तरीका
5 लीटर देसी गाय का मट्ठा लेकर 15 ग्राम बराबर हींग लेकर अच्छी तरह से बारीक़ पीसकर घोल बनाकर उसमे बीज को उपचारित करे घंटे सुखाने पर बुवाई करे ।
5 देसी गाय के गोमूत्र में बीज को उपचारित 2-3 घंटे सूखने के बाद बुवाई करे ।
खाद एवं उर्वरक
गोबर की सड़ी खाद 50-60 टन20 किलो ग्राम नीम की खली 20 किलो ग्राम अरंडी की खली इन सब खादों को अच्छी तरह से मिलाकर प्रति एकड़ भूमि में समान मात्रा में छिड़काव कर जुताई कर खेत तैयार कर बुवाई करें और जब फसल 25 - 30 दिन की हो जाए तब उसमे 10ली. गौमूत्र में नीम का काड़ा मिलाकर अच्छी प्रकार से मिश्रण तैयार कर फसल में तर-बतर कर छिड़काव करें ।
सिंचाई
आलू कि सफल खेती के लिए सिंचाई का महत्व पूर्ण योगदान है मैदानी क्षेत्रो में पानी की उपलब्धता होने पर ही खेती कि जा सकती है परन्तु पहाड़ी क्षेत्रो में आलू कि खेती वर्षा पर निर्भर करती है ।
खरपतवार
आलू कि खेती में खर पतवारो कि समस्या मिटटी चढ़ाने से पूर्ब अधिक होती है यह समस्या निराई गुड़ाई और मिटटी चढ़ाने से काफी कम हो जाती है फिर भी किन्ही किन्ही स्थानों आर खरपतवार कि बढ़वार इतनी अधिक हो जाती है कि वे आलू के पौधे निकलने से पहले ही उन्हें ढक लेते है जिसके कारण आलूके फसल को काफी क्षति होती है उन्हें निकाई गुड़ाई कर निकाल देना चाहिए ।
कीट चौपा रोग उपचार
देसी गाय का 5 लीटर मट्ठा लेकर उसमे 5 किलो नीम कि पत्ती या 2 किलोग्राम नीम कि खली या 2 किलोग्राम नीम की पत्त्ती एक बड़े मटके में 40-50 दिन भरकर तक सडा कर - सड़ने के बाद उस मिश्रण में से 5 लीटर मात्रा को 200 लीटर पानी में डालकर अच्छी तरह मिलाकर तर बतर कर प्रति एकड़ छिड़काव करे ।
इसके अलावा कई अन्य रोगों में कुतरा, वाइट ग्रब
इसे कुरमुला कि संज्ञा भी दी जाती है जोसफ़ेद या सलेटी रंग की होती है इसका शरीर मुडा हुआ और सर भूरे रंग का होता है यह जमीन के अन्दर रहकर पौधों कि जड़ो को क्षति पहुंचता है। इसके अतिरिक्त आलू में छिद्र कर देती है जिसके कारण आलू का बाजार भाव कम हो जाता है ।
पछेती अंगमारी तथा काली रुसी ब्लैक स्कर्फ का उपचार हेतु 10 लीटर देसी गाय का गोमूत्र में 2 किलो अकौआ की पत्ती 2किलो नीम की पत्ती 2किलो बेसरम की पत्ती मिलाकर 10-15 दिन तक सड़ाकर इस मूत्र को आधा शेष बचने तक उबालकर फिर इसके लीटर 1 मिश्रण को 200 लीटर पानी में मिलाकर तर बतर कर पम्प द्वारा प्रति एकड़ छिड़काव करे ।
खुदाई
खेतमें खुदाई के समय कटे और सड़े आलू के कंदों को अलग कर देना चाहिए, खुदाई छंटाई और बोरियों में भरते समय और बाजार भेजने के समय इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि आलूका छिलका न उतरे साथ ही उन्हें किसी प्रकार का क्षति नहीं होनी चाहिए तो बाजार भाव अच्छा रहता है ।
उपज
आलू कि उपज उसकी किस्म भूमि कि उर्बरा शक्ति और फसल की देखभाल पर निर्भर करती है मैदानी क्षेत्रो में एक हेक्टेयर अगेती, मध्य मौसमी किस्मों की 200-250 क्विंटल और पछेती किस्मों की 300-400 क्विंटल तक उपज मिलती है पर्वतीय घाटियों में 150 - 200 क्विंटल और ऊँचे पहाड़ो पर 200 क्विंटल तक उपज मिल जाती है ।
भण्डारण
आलू शीघ्र ख़राब होने वाली फसल है अत: इसके लिए अच्छे भण्डारण की सुविधा का होना नितांत आवश्यक है । मैदानी क्षेत्रो में आलू को ख़राब होने से बचाने के लिए शीत भंडार गृहों में रखने कि आवश्यकता होती है इन शीत भंडार गृहों में तापमान 1 से 2.5 डिग्री सेल्सियस और आपेक्षिक आद्रता 90-95% होती है । इस अवसर पर कृषि उप निदेशक दयाशंकर शर्मा सहित अन्य कृषि अधिकारी व प्रशासनिक अधिकारी मौजूद रहे ।
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