रसोईकक्ष की आँतरिक संरचना एवं साज-सज्जा से होने वाले प्रभाव

रसोईकक्ष की आँतरिक संरचना एवं साज-सज्जा से होने वाले प्रभाव

  वास्तुविद पंडित दयानन्द शास्त्री के अनुसार किचन/रसोईकक्ष की आँतरिक संरचना एवं साज-सज्जा भी अपना प्रभाव दिखाए बिना नहीं रहती। अतः वास्तु नियमों के अनुसार गृहनिर्माण में इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है कि इस कक्ष में हाथ धोने कावाँशबेसिन, बरतन धोने का सिंक, नल, पीने के पानी की टंकी या घड़ा, फ्रीज, मिक्सी, बिजली के अन्य उपकरण, दूध, दही आदि रखने की उचित व्यवस्था होनी चाहिए। इसी तरह बरतनरखने के रैक, आलमारी, टाँड़ आदि की व्यवस्था, खिड़की, दरवाजे, एक्जास्टफैन, खाद्यवस्तुओं का भण्डारण आदि किस जगह पर करना उचित है, इन तमाम बातों को ध्यान में रखनेसे परेशानियों से सहज ही छुटकारा मिल जाता है।
 
समूचा भवन भले ही वास्तुनियमों के अनुसार क्यों न बना हो, किंतु इस प्रकार कीछोटी-सी आँतरिक संरचनात्मक भूल भी सारे घर-परिवार का वातावरण बिगाड़कर रख देती है।उदाहरण के लिए सिंक, वाँशबेसिन, कपड़ा धोने या बरतन साफ करने का स्थान यदि रसोईघरसे सटकर आग्नेय दिशा में है, तो इससे परेशानियाँ पैदा होती रहेंगी। आग और पानी, दोनों साथ-साथ नहीं रह सकते। इसी तरह अगर रसोई में चूल्हे के ऊपर या नीचे अथवासमानांतर में या चूल्हे के सामने पानी का कलश या घड़ा रखा जाए तो निश्चित रूप सेपारिवारिक वातावरण कलहपूर्ण बना रहेगा। इन स्थानों पर रखे गए बरतन का पानी पीनेवाले गर्म मिजाज के बन जाते हैं, फलतः परस्पर लड़ते-झगड़ते रहते हैं।
 
वास्तुशास्त्र के अनुसार जल का स्थान ईशानकोण, उत्तर-पूरब या पश्चिम दिशा मेंतो हो सकता है, किंतु आग्नेय कोण-अग्निस्थान में किसी भी प्रकार से नहीं हो सकता।अगर आग्नेयकोण, नैऋत्यकोण, दक्षिण दिशा या घर के मध्य में जल स्थान जैसे कुआँ, बोरिंग, जल की टंकी, घड़े आदि स्थापित किए जाएँगे तो अनेक प्रकार के संकटों, विघ्न-बाधाओं का सामना करना पड़ेगा। अतः रसोईकक्ष अगर आग्नेयकोण में स्थित है तोसिंक, वाँशबेसिन, पानी का नल आदि ईशान क्षेत्र में पूरब की ओर ही रखना चाहिए, लेकिनठीक ईशान कोण में नहीं होना चाहिए। इन्हें उत्तर दिशा में भी बनाया जा सकता है।पश्चिम या पश्चिमवायव्य दिशा में स्थित रसोईकक्ष में गैसपट्टी पर लगा हुआ सिंक तथापानी का नल आदि वायव्य क्षेत्र के पश्चिम में होना चाहिए।
 
वास्तुविद पंडित दयानन्द शास्त्री के अनुसार किसी भी किचन/रसोईघर से बहने वालेजल की निकासी के लिए दक्षिण दिशा या पश्चिम दिशा या नैऋत्य कोण की तरफ नालियों कीव्यवस्था की जा सकती है। साफ-स्वच्छ पानी के भण्डारण के लिए यदि छोटे टैंक आदिबनाने की आवश्यकता हो तो उसे ईशान कोण में बनाना श्रेष्ठ माना जाता है। पीने कापानी भी इसी दिशा में रखा जाता है। यदि ऐसी व्यवस्था न बन पड़े तो पीने का पानीउत्तर दिशा में भी रखा जा सकता है।
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